कशिस थी कभी, आज भी है,
खूशबू की बयार आज भी है,
अनजाने की गलती का दीदार आज भी है,
हर उस चहक का इंतज़ार आज भी है!
जब तक हमने महसूस किया सांसो में तुझे,
मदहोस था उस खुशबू को पा के
खामोस हूँ मैं खो के तुम्हे,
कहीं हुई गलती सोचता हूँ अफ़सोस करके!
तू दूर होती गयी, दर्द बढ़ता गया,
हर मल्हार पर नशे की चाहत आदत बन गयी,
पतझड़ में पत्तो की चरमराहट कम हो गयी,
ठंढ की आगोश आज घेर लेती मुझे,
बसंत का मज़ा तो ख़त्म ही हो गया!
दर्द को दिखाना आँखे भूल गया था कब का,
अब तो आंसुओं ने भी साथ छोड़ दिया,
अपनी पंक्तियों में डूबा ये आशिक
आज लिखते लिखते तेरी यादों फिर खो गया !!!
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Wonderful lines! Kudos!
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Thanks Himansu!!
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