भटकती जिन्दगी !!!

बीत गयी बातें ये, होने को है नयी शुरु,
रह गए ये बचे दिन, जीना फिर किया शुरु,
कच्ची थी कली जब वो गयी टूट,
गया साथ उसका डाली से छूट,
लेकिन हूँ खुश इस बात से, दर्द अभी है कम हुआ,
सिहर जाता है जिस्म मेरा, सोच के उस लम्हे को,
जब खिले हुए फूल को ले जाता कोई तोड़|

विश्वास है की फिर बरसात आएगी, निकलेगा धुप कभी,
हरे हरे पत्तों के बीच आएगी एक जिन्दगी नयी,
झूमेगा बयारों के संग शीश पेड़ की,
चह्केंगी चिड़िया हर बसंती सांस पर,
दिन के पल पल एक नया रूप आ जायेगा,
हरी पटल में छिपा वो लाल पंख खिलने को कस्मसएगी,
धीरे धीरे पीती ओस कली फूल बन जाएगी|
अपनी हसीन रूप रंग से सबका मन ललचाएगी|

रुकी न रहती है ये जिन्दगी कोई, न रुकता है साथी सदा,
कोई बोल कर जाता है, दे जाता है कोई दगा,
लेकिन बावले इस मन को समझ नहीं कुछ आता है,
जुड़ जाता है इस कदर किसी से भूल कभी न पता है,
लेकिन चल पड़ इस आस से जायेगा मिल किसी से,
मन को बहलना एक बार है पड़ता, लग जाये बस दिल किसी से|